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मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं - मुज़्तर ख़ैराबादी कविता - Darsaal

मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं

मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं

तुम्हारी चाह में जीने के लाले पड़ते जाते हैं

उधर उस की शरारत जिस ने ग़म की आग सुलगा दी

इधर मेरा कलेजा जिस में छाले पड़ते जाते हैं

मिरे उन के तअल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता

ख़ुदा का शुक्र सब के मुँह में ताले पड़ते जाते हैं

ग़म-ए-नाकामी-ए-कोशिश से हालत बिगड़ी जाती है

कलेजे में यहाँ बे-आग छाले पड़ते जाते हैं

हमारा दर्द आह-ए-दिल मज़ा देता है उड़ उड़ कर

तुम्हारे चाँद से चेहरे पे हाले पड़ते जाते हैं

मसीहा जा रहा है दौड़ कर आवाज़ दो 'मुज़्तर'

कि दिल को देखता जा जिस में छाले पड़ते जाते हैं

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In Hindi By Famous Poet Muztar Khairabadi. is written by Muztar Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Muztar Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.