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Muztar Khairabadi Poetry In Hindi - Best Muztar Khairabadi Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Darsaal

मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी

मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है

ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना

ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें

ज़बाँ क़ासिद की 'मुज़्तर' काट ली जब उन को ख़त भेजा

यूँ कहीं डूब के मर जाऊँ तो अच्छा है मगर

ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन

ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में

ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है

ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा

यही सूरत वहाँ थी बे-ज़रूरत बुत-कदा छोड़ा

यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी

याद करना ही हम को याद रहा

वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं

वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे

वो पास आने न पाए कि आई मौत की नींद

वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी

वो मज़ाक़-ए-इश्क़ ही क्या कि जो एक ही तरफ़ हो

वो करेंगे वस्ल का वा'दा वफ़ा

वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की

वो कहते हैं कि क्यूँ जी जिस को तुम चाहो वो क्यूँ अच्छा

वो गले से लिपट के सोते हैं

वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी

वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में

वक़्त आराम का नहीं मिलता

वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को

उठते जोबन पे खिल पड़े गेसू

उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा

उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे

उस का भी एक वक़्त है आने दो मौत को

उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते

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