आदमी आदमी के बस का नहीं
आदमी आदमी के बस का नहीं
और ये क़िस्सा सौ बरस का नहीं
सिर्फ़ तस्वीर खींच सकता है
दुख तिरे कैमरे के बस का नहीं
जब ये आती है तो नहीं जाती
आगही है हुज़ूर चसका नहीं
जलती बत्ती है वो हवा हूँ मैं
मसअला सिर्फ़ दस्तरस का नहीं
रिक्शे वाले ने इस को बतलाया
ये तिरा मुंतज़िर है बस का नहीं
(853) Peoples Rate This