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आदमी आदमी के बस का नहीं - मुज़दम ख़ान कविता - Darsaal

आदमी आदमी के बस का नहीं

आदमी आदमी के बस का नहीं

और ये क़िस्सा सौ बरस का नहीं

सिर्फ़ तस्वीर खींच सकता है

दुख तिरे कैमरे के बस का नहीं

जब ये आती है तो नहीं जाती

आगही है हुज़ूर चसका नहीं

जलती बत्ती है वो हवा हूँ मैं

मसअला सिर्फ़ दस्तरस का नहीं

रिक्शे वाले ने इस को बतलाया

ये तिरा मुंतज़िर है बस का नहीं

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In Hindi By Famous Poet Muzdam Khan. is written by Muzdam Khan. Complete Poem in Hindi by Muzdam Khan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.