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मैं हरे मौसमों में जलता रहा - मुज़फ़्फ़र वारसी कविता - Darsaal

मैं हरे मौसमों में जलता रहा

मैं हरे मौसमों में जलता रहा

ख़ुशबुओं से धुआँ निकलता रहा

आग पर होंट रख दिए थे कभी

आख़िरी साँस तक पिघलता रहा

मैं अकेला भी कारवाँ की तरह

रास्तों के बग़ैर चलता रहा

हादसे मुझ को पेश आते रहे

और ज़माने का जी बहलता रहा

मेरी आवाज़ मुन्हरिफ़ न हुई

वक़्त का फ़ैसला बदलता रहा

ज़िंदगी मुझ को क़त्ल करती रही

मौत की वादियों में पलता रहा

कारोबार-ए-सुख़न किया मैं ने

या 'मुज़फ़्फ़र' लहू उगलता रहा

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Warsi. is written by Muzaffar Warsi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Warsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.