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डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा - मुज़फ़्फ़र वारसी कविता - Darsaal

डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा

डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा

मैं डूब कर ही सही पार उतर चुका हूँगा

पहुँच तो जाऊँगा आब-ए-हयात तक लेकिन

ज़बाँ भिगोने से पहले ही मर चुका हूँगा

सुनाई जाएगी जब तक मुझे सज़ा-ए-सुख़न

सुकूत-ए-वक़्त में आवाज़ भर चुका हूँगा

मिसाल-ए-रेग हूँ में साअ'तों की मुट्ठी में

वो जब तक आएगा सारा बिखर चुका हूँगा

ज़माना आएगा उस वक़्त ख़ैर-मक़्दम को

जब इस जहाँ से 'मुज़फ़्फ़र' गुज़र चुका हूँगा

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Warsi. is written by Muzaffar Warsi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Warsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.