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याद ये किस की आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया - मुज़फ़्फ़र रज़्मी कविता - Darsaal

याद ये किस की आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

याद ये किस की आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

सारे ही ग़म भुला गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

ज़िंदगी क्या है ग़म है क्या सोचते सोचते यूँही

मुझ को हँसी जो आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

शाम-ए-फ़िराक़ में मुझे तेरे ही ग़म के फ़ैज़ से

नींद अचानक आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

आज वफ़ा के साज़ पर कौन ये इबरत-ए-सुख़न

मेरी ग़ज़ल सुना गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

शिद्दत-ए-रंज-ओ-यास में भूली हुई कोई ख़ुशी

इतना मुझे रुला गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

अच्छा हुआ कि दिल की बात आज किसी के रू-ब-रू

मेरी ज़बाँ तक आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

ये भी ख़ुदा का फ़ज़्ल है मेरी नवा-ए-ज़िंदगी

औरों के काम आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

कश्मकश-ए-हयात में हद से बढ़ीं जो उलझनें

आप की याद आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

रज़्मी'-ए-बे-क़रार को अहल-ए-ख़ुलूस की नज़र

प्यार से जब सिला गई ज़ेहन का बोझ उतर गया

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Razmi. is written by Muzaffar Razmi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Razmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.