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मसअले भी मिरे हमराह चले आते हैं - मुज़फ़्फ़र रज़्मी कविता - Darsaal

मसअले भी मिरे हमराह चले आते हैं

मसअले भी मिरे हमराह चले आते हैं

हौसले भी मिरे हमराह चले आते हैं

कुछ न कुछ बात मिरे अज़्म-ए-सफ़र में है ज़रूर

क़ाफ़िले भी मिरे हमराह चले आते हैं

जब भी ऐ दोस्त तिरी सम्त बढ़ाता हूँ क़दम

फ़ासले भी मिरे हमराह चले आते हैं

ग़म मिरे साथ निकलते हैं सवेरे घर से

दिन ढले भी मिरे हमराह चले आते हैं

पा-बरहना जो गुज़रता हूँ तिरे कूचे से

आबले भी मिरे हमराह चले आते हैं

मेरे माहौल में हर सम्त बुरे लोग नहीं

कुछ भले भी मिरे हमराह चले आते हैं

जब भी करता है क़बीला मिरा हिजरत 'रज़्मी'

ज़लज़ले भी मिरे हमराह चले आते हैं

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Razmi. is written by Muzaffar Razmi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Razmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.