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ख़ुशबू बदन की ख़ाली समुंदर हवाओं के - मुज़फ़्फ़र इरज कविता - Darsaal

ख़ुशबू बदन की ख़ाली समुंदर हवाओं के

ख़ुशबू बदन की ख़ाली समुंदर हवाओं के

क्यूँ छेड़ते हैं हम को पयम्बर सदाओं के

देखी न जाए हम से परेशाँ बरहनगी

चुनते हैं अपने जिस्म में पत्थर रिदाओं के

फिर बूँद बूँद टपकी हमारे बदन से धूप

फिर अक्स अक्स बिखरे हैं मंज़र फ़ज़ाओं के

ये और बात अपनी ही तह तक न जा सके

उतरे थे चाँद पर भी शनावर ख़लाओं के

तपते रहे हैं ख़ामुशी का ज़हर उम्र-भर

शायद वो जानते थे मुक़द्दर दुआओं के

'ईरज सदा-ए-रंग महकने लगी हवा

क़ौस-ए-क़ुज़ह ने खोल दिए पर घटाओं के

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Iraj. is written by Muzaffar Iraj. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Iraj. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.