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फ़ासलों की बर्फ़ पिघलेगी मुझे ये डर न था - मुज़फ़्फ़र इरज कविता - Darsaal

फ़ासलों की बर्फ़ पिघलेगी मुझे ये डर न था

फ़ासलों की बर्फ़ पिघलेगी मुझे ये डर न था

इस से पहले लम्स का सूरज मिरे सर पर न था

दिल के दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था कौन था

इक ज़रा सोचा कोई चेहरा कोई पैकर न था

आइने की ज़िद थी बाँटे जाएँ चेहरों के नुक़ूश

वर्ना मैं भी काँच की गुड़ियों का सौदागर न था

ज़र्द ठिठुरी धूप में पहने हुए उर्यां बदन

मैं ने पहचाना वो दीवाना न था ख़ुद-सर न था

इस से पहले या तो 'ईरज' ने कभी देखा न चाँद

या कभी इस तरह पहले चाँद शो'ला-गर न था

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Iraj. is written by Muzaffar Iraj. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Iraj. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.