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बे-मौसम फूटबाल - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी कविता - Darsaal

बे-मौसम फूटबाल

हम ने पहले ही रोका था

और अम्मी ने भी टोका था

ऐमन इस कीचड़ पानी में

मत खेलो फूटबाल

कैसा छिल गया सारा गाल

लेकिन तुम हो एक ही नट-खट

पहने जूते करते खटपट

भागे इस फूटबाल को ले कर

सब की बात को टाल

कैसा छिल गया सारा गाल

ये ठहरा बरसात का मौसम

आँगन में कीचड़ है क्या कम

फिसला पाँव तो सारे कपड़े

हो गए ख़ून से लाल

कैसा छिल गया सारा गाल

इस में है अपनी ही भलाई

कहना बड़ों का मानो भाई

मरहम लगवा लो और जा कर

लेटो ओढ़ के शाल

कैसा छिल गया सारा गाल

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