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यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी कविता - Darsaal

यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ

यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ

आ जा मिरी रूठी हुई तन्हाई इधर आ

मुझ को भी ये लम्हों का सफ़र चाट रहा है

मिल बाँट के रो लें ऐ मिरे भाई इधर आ

ऐ सैल-ए-रवान-ए-अबदी ज़िंदगी नामी

मैं कौन सा पाबंद हूँ हरजाई इधर आ

इस निकहत-ओ-रानाई से खाए हैं कई ज़ख़्म

ऐ तू कि नहीं निकहत-ओ-रानाई इधर आ

आसाब खिंचे जाते हैं अब शाम ओ सहर में

होने ही को है मारका-आराई इधर आ

सुनता हूँ कि तुझ को भी ज़माने से गिला है

मुझ को भी ये दुनिया नहीं रास आई इधर आ

मैं राह-नुमाओं में नहीं मान मिरी बात

मैं भी हूँ इसी दश्त का सौदाई इधर आ

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Hanfi. is written by Muzaffar Hanfi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Hanfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.