वो एक पल का साथ ब-वक़्त-ए-नमाज़ है
वो एक पल का साथ ब-वक़्त-ए-नमाज़ है
महमूद आसमाँ पे ज़मीं पर अयाज़ है
जीने में क्या कशिश है मगर देखते हैं हम
कितनी तुम्हारे ज़ुल्म की रस्सी दराज़ है
माना कि इल्तिफ़ात के आदी नहीं हो तुम
लेकिन बराए-मश्क़-ए-सितम क्या जवाज़ है
उस अंजुमन में बात नहीं बन सकी मगर
अल्लाह को सुना है बड़ा कारसाज़ है
अपनी कहो हमारी सुनो मशवरा करो
अब क्या ग़म-ए-ज़माना मोहब्बत का राज़ है
अपनी ग़लत वफ़ा की तलाफ़ी करूँगा मैं
वो और होंगे जिन को वफ़ाओं पे नाज़ है
दिलकश बना रहा है 'मुज़फ़्फ़र' का ख़ास रंग
हालाँकि दास्तान बड़ी जाँ-गुदाज़ है
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