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बने हुए हैं फ़सील-ए-नज़र दर-ओ-दीवार - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी कविता - Darsaal

बने हुए हैं फ़सील-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

बने हुए हैं फ़सील-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

हर इक तरफ़ दर-ओ-दीवार पर दर-ओ-दीवार

मुझे भी दर-ब-दरी में ही लुत्फ़ आता है

मिरी बला से फ़राहम न कर दर-ओ-दीवार

हमारे घर में तो मीनार बन गई हर ईंट

छतों की हद में उठाते हैं सर दर-ओ-दीवार

घटा का क्या है बरस कर निकल गई आगे

यहाँ सिसकते रहे रात भर दर-ओ-दीवार

हमारे राज़ में शामिल रहे पड़ोसी भी

इसी लिए तो हैं दीवार-ओ-दर दर-ओ-दीवार

ख़बर न फैलने पाए कि जा रहा है कोई

नहीं तो सर पे उठा लेंगे घर दर-ओ-दीवार

तिरा बदन तो सलामत है ऐ 'मुज़फ़्फ़र' फिर

ये किस के ख़ून से हैं तर-ब-तर दर-ओ-दीवार

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Hanfi. is written by Muzaffar Hanfi. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Hanfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.