बीते लम्हों को ढूँढता हूँ मैं
बीते लम्हों को ढूँढता हूँ मैं
तितलियों को पकड़ रहा हूँ मैं
जाने वाले मुझे भी ले चल साथ
क़ैद-ए-हस्ती में मुब्तला हूँ मैं
इक तरफ़ सोच इक तरफ़ एहसास
दो गिरोहों में बट गया हूँ मैं
जब्र आग़ाज़ जब्र ही अंजाम
तुझ से ख़ालिक़ मिरे ख़फ़ा हूँ मैं
जब से तेरे क़रीब आया हूँ
ख़ुद से भी दूर हो गया हूँ मैं
तू मिरी मौत को हराम न कह
तेरी ख़ातिर तो मर रहा हूँ मैं
संग-ए-रह बन के रोक लूँगा तुझे
तेरी आदत समझ गया हूँ मैं
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