क़तरे में भी छुपे हैं भँवर रक़्स कीजिए
क़तरे में भी छुपे हैं भँवर रक़्स कीजिए
क़ैद-ए-सदफ़ में मिस्ल-ए-गुहर रक़्स कीजिए
कीजे फ़सुर्दगी-ए-तबीअ'त का कुछ इलाज
इस ख़ाक-दाँ में मिस्ल-ए-शरर रक़्स कीजिए
इक नौजवाँ ने आज बुज़ुर्गों से कह दिया
होती नहीं जो उम्र बसर रक़्स कीजिए
सूजे हैं पाँव आँख से ही ताल दीजिए
उलझा हुआ है तार-ए-नज़र रक़्स कीजिए
गर्दिश में इक सितारा-ए-बेचारा ही नहीं
है आसमाँ भी ज़ेर-ओ-ज़बर रक़्स कीजिए
गुज़रे जो माह-ओ-साल तो लय भी बदल गई
अब के बरस ब-रंग-ए-दिगर रक़्स कीजिए
फ़रियाद कीजिए न कोई ज़ुल्म ढाइए
इक वहम है शिकस्त-ओ-ज़फ़र रक़्स कीजिए
इस ताइफ़े में एक कमी है तो आप की
ऐ दुश्मनान-ए-इल्म-ओ-हुनर रक़्स कीजिए
फैशन है आज-कल का मदारी की डुगडुगी
दिल चाहे या न चाहे मगर रक़्स कीजिए
अपनी तो झोंपड़ी में थिरकता नहीं चराग़
जा कर किसी रक़ीब के घर रक़्स कीजिए
'सय्यद' न रेडियो न सिनेमा है आप का
अपने ही गीत गाइए और रक़्स कीजिए
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