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कौन कहता है मुसीबत पर कभी मातम न कर - मुज़फ्फर अली सय्यद कविता - Darsaal

कौन कहता है मुसीबत पर कभी मातम न कर

कौन कहता है मुसीबत पर कभी मातम न कर

मौत है इक पल की सारी ज़िंदगी मातम न कर

ग़म न कर उन के दरीचों पर चराग़ाँ हो गया

चलती फिरती है सदा से रौशनी मातम न कर

कर्बला से ले के रेगिस्तान-ए-सीनाई तलक

मिट नहीं सकती हमारी तिश्नगी मातम न कर

फिर से मोमिन आतिश-ए-नमरूद में डाले गए

है यही सुन्नत ख़लीलुल्लाह की मातम न कर

कुफ़्र है इक मिल्लत-ए-वाहिद ये रौशन हो गया

मुस्तक़िल है रिश्ता-ए-ईमान भी मातम न कर

किश्त-ए-मुस्लिम को हमेशा ख़ून से सींचा गया

एक दिन होगी यही खेती हरी मातम न कर

ये भी क्या कम है बसीरत की नज़र हासिल हुई

दोस्तों ने की जो तुझ से दुश्मनी मातम न कर

'सय्यदी' तारीख़ में इक दो बरस कुछ भी नहीं

कश्मकश है इज़्तिराब-ए-दाइमी मातम न कर

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Ali Syed. is written by Muzaffar Ali Syed. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Ali Syed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.