कोई महरूम-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द
कोई महरूम-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द
रंग लाई मिरी तासीर-ए-दुआ मेरे बा'द
आज ईसा की तरह दार पे खींचे है मुझे
मुझ पे रोएगी ये मख़्लूक़-ए-ख़ुदा मेरे बा'द
मेरे मिटने से हुए गोया क़फ़स से आज़ाद
न रहा कोई गिरफ़्तार-ए-बला मेरे बा'द
ऐसी रूठी है मशिय्यत से तिरी रब्ब-ए-करीम
फिर चमन में न गई बाद-ए-सबा मेरे बा'द
फ़ातिहा के लिए आया था वो हमराह रक़ीब
ख़ूब दी उस ने मोहब्बत की सज़ा मेरे बा'द
सुब्ह-दम आती है इस सोख़्ता-सामानी में
बाग़ से नाला-ए-बुलबुल की सदा मेरे बा'द
मेरी जानिब से कोई जा के कहे मजनूँ से
ख़ाक-ए-सहरा-ए-तमन्ना न उड़ा मेरे बा'द
उस ने अहबाब से पूछा है मिरे घर का पता
याद आया उसे पैमान-ए-वफ़ा मेरे बा'द
वो जो लिक्खा था कभी ख़ून-ए-जिगर से मैं ने
मिटता जाता है वही नक़्श-ए-वफ़ा मेरे बा'द
तुझ पे इल्ज़ाम-ए-मोहब्बत न लगा दे दुनिया
आ के तुर्बत पे यूँ आँसू न बहा मेरे बा'द
रंज तो ये है 'मुज़फ़्फ़र' कि वो पैमान-शिकन
लब पे लाया न कभी हर्फ़-ए-दुआ मेरे बा'द
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