ऐ दोस्त मुझे सोज़-ए-निहाँ मार न डाले
ऐ दोस्त मुझे सोज़-ए-निहाँ मार न डाले
ये नाला-ए-शब आह-ओ-फ़ुग़ाँ मार न डाले
इक उम्र से पैवस्त रग-ए-जाँ है मगर अब
डरता हूँ कि ये तीर-ए-तपाँ मार न डाले
राइज है ज़बाँ-बंदी का दस्तूर चमन में
बुलबुल को कहीं ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ मार न डाले
ख़ुर्शीद-ए-क़यामत से सिवा सोज़-ए-दरूँ है
ऐ शैख़ तुझे इश्क़-ए-बुताँ मार न डाले
तू ख़्वाब है एहसास है नग़्मा है कि गुल है
ये कश्मकश-ए-वहम-ओ-गुमाँ मार न डाले
बुत-ख़ाने में जाता है बड़े शौक़ से लेकिन
ज़ाहिद को कहीं हुस्न-ए-बुताँ मार न डाले
बेताबी-ए-दिल की ये दवा ख़ूब है लेकिन
पहलू में ये शर्बत की दुकाँ मार न डाले
हद से न गुज़र जाए तिरी तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल
फ़ुर्क़त तिरी ऐ जान-ए-जहाँ मार न डाले
बैठा हूँ तिरे साया-ए-गेसू में मगर अब
डरता हूँ कि ये राहत-ए-जाँ मार न डाले
अब दौलत-ए-दिल हार के रोता है 'मुज़फ़्फ़र'
मुफ़लिस को ये एहसास-ए-ज़ियाँ मार न डाले
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