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रेत के शानों पे शबनम की नमी रात गए - मुज़फ़्फ़र अबदाली कविता - Darsaal

रेत के शानों पे शबनम की नमी रात गए

रेत के शानों पे शबनम की नमी रात गए

और कुछ तेज़ हुई तिश्ना-लबी रात गए

बाम ओ दर जाग उठे शौक़ ने आँखें खोलीं

दिल की दहलीज़ पे दस्तक सी हुई रात गए

मेरे सीने में किसी आग का जलना दिन भर

उस के होंटों पे वो हल्की सी हँसी रात गए

इक इसी ख़्वाब ने क्या क्या न तमाशा देखा

नींद के हाथ में जादू की छड़ी रात गए

फ़त्ह पाई है सराबों पे मिरे अश्कों ने

ग़म ने बाँधी है कई बार नदी रात गए

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In Hindi By Famous Poet Muzaffar Abdali. is written by Muzaffar Abdali. Complete Poem in Hindi by Muzaffar Abdali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.