ख़ल्वत-ए-जाँ से चली बात ज़बाँ तक पहुँची
ख़ल्वत-ए-जाँ से चली बात ज़बाँ तक पहुँची
कोई चिंगारी अँगेठी से धुआँ तक पहुँची
राज़ ओ असरार के खुलने की तवक़्क़ो थी किसे
इक कहानी थी किसी तरह बयाँ तक पहुँची
रह-गुज़र का है तक़ाज़ा कि अभी और चलो
एक उम्मीद जो मंज़िल के निशाँ तक पहुँची
बाइस-ए-राहत-ओ-ग़म लुत्फ़-ए-करम था वर्ना
जितनी ख़्वाहिश थी फ़क़त सूद ओ ज़ियाँ तक पहुँची
तू ने पर्दा न हटाया मुझे तस्कीं न हुई
बंदगी हार के फिर कू-ए-बुताँ तक पहुँची
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