Ghazals of Mutrib Nizami
नाम | मतरब निज़ामी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mutrib Nizami |
वो सामने भी नहीं फिर भी उन का शक क्यूँ है
तल्ख़ी-ए-नौ शकर-आमेज़ हुई जाती है
फूल को ख़ार लिखें ख़ार को शबनम लिक्खें
मैं इक किरन हूँ उजाला है तमकनत मेरी
महके जब रात-की-रानी तो मुझे ख़त लिखना
लाला-ओ-गुल का लहू भी राएगाँ होने लगा
धूप पे कैसी गर्द पड़ी है
बयान-ए-शौक़ को मफ़्हूम से जुदा न करे