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अब ये खुला कि इश्क़ का पिंदार कुछ नहीं - मुस्तहसिन ख़्याल कविता - Darsaal

अब ये खुला कि इश्क़ का पिंदार कुछ नहीं

अब ये खुला कि इश्क़ का पिंदार कुछ नहीं

दीवार गिर गई पस-ए-दीवार कुछ नहीं

जिस ने समझ लिया था मुझे आसमान पर

अब जानता है वो मिरा किरदार कुछ नहीं

ख़ुद मुझ को ए'तिमाद नहीं अपनी ज़ात पर

इंकार मेरा कुछ नहीं इक़रार कुछ नहीं

वो भी समझ गया कि हवस का ये खेल है

अब मदह-ए-चश्म-ओ-गेसू-ओ-रुख़्सार कुछ नहीं

मिज़राब-ए-ग़म ने और भी ख़ामोश कर दिया

गो खिंच गया है साज़ का हर तार कुछ नहीं

मैं बोझ हूँ तो फेंक दे ऐ कुर्रा-ए-ज़मीन

कुछ और तेज़ घूम ये रफ़्तार कुछ नहीं

धुँदला गया है शीशा-ए-मासूमियत 'ख़याल'

अब इंफ़िआल-ए-चश्म-ए-गुनहगार कुछ नहीं

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In Hindi By Famous Poet Mustahsin Khayal . is written by Mustahsin Khayal . Complete Poem in Hindi by Mustahsin Khayal . Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.