रंग-ओ-सिफ़ात-ए-यार में दिल ढल नहीं रहा
शो'लों की ज़द में फूल है और जल नहीं रहा
वो धूप है कि पेड़ भी जलने पे आ गया
वो भूक है कि शाख़ पे अब फल नहीं रहा
ले आओ मेरी आँख की लौ के क़रीब उसे
तुम से बुझा चराग़ अगर जल नहीं रहा
हम लोग अब ज़मान-ओ-ज़माना से दूर हैं
या'नी यहाँ पे वक़्त भी अब चल नहीं रहा