दरियाओं को हाल सुना कर रक़्स किया
दरियाओं को हाल सुना कर रक़्स किया
सहराओं की ख़ाक उड़ा कर रक़्स किया
क़ैस तुम्हारी सुन्नत ऐसे ज़िंदा की
हाथों में कश्कोल उठा कर रक़्स किया
क़ैस मुझे इस बात पे हैरत होती है
तू ने कैसे दश्त में जा कर रक़्स किया
उन लोगों की हालत देखने वाली थी
जिन लोगों ने वज्द में आ कर रक़्स किया
जब मेरी आवाज़ न कानों तक पहुँची
फिर मैं ने तहरीर में आ कर रक़्स किया
नीली छत पे ला-महदूद परिंदे थे
आज किसी ने अश्क बहा कर रक़्स किया
भेद खुला जिस शख़्स पे तेरे होने का
उस ने तेरे क़ुर्ब को पा कर रक़्स किया
छन छना छन छन छन छन की आई सदा
घुंघरू पहने होश गँवा कर रक़्स किया
'मुस्तहसन' मैं 'जामी' हूँ 'मंसूर' नहीं
दिलबर को अशआ'र सुना कर रक़्स किया
(398) Peoples Rate This