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मिरे ज़ख़्मी होंट - मुस्तफ़ा ज़ैदी कविता - Darsaal

मिरे ज़ख़्मी होंट

नश्शा जिस वक़्त भी टूटेगा, कई अंदेशे

सुब्ह-ए-लब-बस्ता के सीने में उतर आएँगे

महफ़िल-ए-शोला-ए-शब-ताब के सारे लम्हे

राख हो जाएँगे पलकों पे बिखर जाएँगे

रेत दर आएगी सुनसान शबिस्तानों में

और बगूले पस-ए-दीवार नज़र आएँगे

इस से पहले कि ये हो जाए, मिरे ज़ख़्मी होंट

मैं ये चाहूँगा कि बे-लहन-ओ-सदा हो जाएँ

मैं ये चाहूँगा कि बुझ जाए मिरी शम-ए-ख़याल

इस से पहले कि सब अहबाब जुदा हो जाएँ

इस लिए मुझ से न पूछो कि सफ़-ए-याराँ में

क्यूँ ये दिल बे-हुनर-ओ-हुस्न-ओ-तमीज़ इतना है

और ऐ दीदा-वरो! ये भी न पूछो कि मुझे

साग़र-ए-ज़हर भी क्यूँ जाँ से अज़ीज़ इतना है

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In Hindi By Famous Poet Mustafa Zaidi. is written by Mustafa Zaidi. Complete Poem in Hindi by Mustafa Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.