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आसमाँ ज़र्द था - मुस्तफ़ा ज़ैदी कविता - Darsaal

आसमाँ ज़र्द था

ऐ कली तुझ को हमारा भी ख़याल आ ही गया

हम तो मायूस हुए बैठे थे सहराओं में

अब तिरा रूप भी धुँदला सा चला था दिल में

तू भी इक याद सी थी जुमला हसीनाओं में

तह-ब-तह गर्द से आलूद था दिन का दामन

रात का नाम न आता था तमन्नाओं में

रक़्स-ए-शबनम की परस्तार निगाहों के लिए

धूप के अब्र थे ख़ुर्शीद की बौछारें थीं

आसमाँ ज़र्द था जैसे कोई यरक़ाँ का मरीज़

जिस के तकिए के लिए रेत की दस्तारें थीं

दिल भरा रहता था जलते हुए छाले की तरह

रूह के वास्ते दीवारें ही दीवारें थीं

कोई आवाज़ न आती थी ब-जुज़ सौत-ए-मुहीब

कोई नग़्मा न था चीलों के तरन्नुम के सिवा

सारा अंदाज़ था फैले हुए दरियाओं का

रेग-ए-सहरा के समुंदर में तलातुम के सिवा

ख़ुश्क पत्तों का नमक रेत के ज़र्रों की मिठास

होंट सब ज़ाइक़े रखते थे तरन्नुम के सिवा

कब तक इस दिल की लगन रास न आती आख़िर

मुस्कुराता हुआ गर्दूं पे हिलाल आ ही गया

अपने दीवानों को सीने से लगाने के लिए

इक ग़ज़ल-पैकर ओ अफ़्साना-जमाल आ ही गया

ऐ फ़लक तू ने हमें ख़ाक से आख़िर को चुना

ऐ कली तुझ को हमारा भी ख़याल आ ही गया

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In Hindi By Famous Poet Mustafa Zaidi. is written by Mustafa Zaidi. Complete Poem in Hindi by Mustafa Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.