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कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे - मुस्तफ़ा ज़ैदी कविता - Darsaal

कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे

कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे

हम गई रात पे दिल को लिए बहलाते रहे

अपने अख़्लाक़ की शोहरत ने अजब दिन दिखलाए

वो भी आते रहे अहबाब भी साथ आते रहे

हम ने तो लुट के मोहब्बत की रिवायत रख ली

उन से तो पोछिए वो किस लिए पछताते रहे

उस के तो नाम से वाबस्ता है कलियों का गुदाज़

आँसुओ तुम से तो पत्थर भी पिघल जाते रहे

यूँ तो ना-अहलों के पीने पे जिगर कटता था

हम भी पैमाने को पैमाने से टकराते रहे

उन की ये वज़्-ए-क़दीमाना भी अल्लाह अल्लाह!

पहले एहसान किया बा'द को शरमाते रहे

यूँ किसे मिलती है मामूल से फ़ुर्सत लेकिन

हम तो इस लुत्फ़-ए-ग़म-ए-यार से भी जाते रहे

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In Hindi By Famous Poet Mustafa Zaidi. is written by Mustafa Zaidi. Complete Poem in Hindi by Mustafa Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.