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बैठा हूँ सियह-बख़्त ओ मुकद्दर इसी घर में - मुस्तफ़ा ज़ैदी कविता - Darsaal

बैठा हूँ सियह-बख़्त ओ मुकद्दर इसी घर में

बैठा हूँ सियह-बख़्त ओ मुकद्दर इसी घर में

उतरा था मिरा माह-ए-मुनव्वर इसी घर में

ऐ साँस की ख़ुशबू लब-ओ-आरिज़ के पसीने

खोला था मिरे दोस्त ने बिस्तर इसी घर में

चटकी थीं इसी कुंज में उस होंट की कलियाँ

महके थे वो औक़ात-ए-मयस्सर इसी घर में

अफ़्साना-दर-अफ़्साना थी मुड़ती हुई सीढ़ी

अशआर-दर-अशआर था हर दर इसी घर में

होती थी हरीफ़ाना भी हर बात पे इक बात

रहती थी रक़ीबाना भी अक्सर इसी घर में

शर्मिंदा हुआ था यहीं पिंदार-ए-इमारत

चमका था फ़क़ीरों का मुक़द्दर इसी घर में

वो जिन के दर-ए-नाज़ पे झुकता था ज़माना

आते थे बड़ी दूर से चल कर इसी घर में

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In Hindi By Famous Poet Mustafa Zaidi. is written by Mustafa Zaidi. Complete Poem in Hindi by Mustafa Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.