गाली
मैं
कभी नहीं जान सका
गाली
जज़्बे की कौन सी सत्ह है
मैं ने कभी गाली नहीं दी
मगर मुझे हमेशा
गालियों से दिलचस्पी रही
मैं हर रोज़
हर तरह की गालियाँ सुनता हूँ
गाली किसी को भी दी जाए
उस्लूब में औरत ज़रूर आती है
मेरी सारी ज़िंदगी
लफ़्ज़ों के दरमियान गुज़री
मुझे हमेशा लफ़्ज़ नज़र आते हैं
गाली
लफ़्ज़ों की एक तरतीब के सिवा कुछ भी नहीं
मैं
गाली दे कर
आम आदमी की तरह
ज़िंदा रहना चाहता हूँ
एक तरतीब
मुझे आम आदमी बनने नहीं देती
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