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जुस्सा-ए-तहय्युर को लफ़्ज़ में जकड़ते हैं - मुस्लिम सलीम कविता - Darsaal

जुस्सा-ए-तहय्युर को लफ़्ज़ में जकड़ते हैं

जुस्सा-ए-तहय्युर को लफ़्ज़ में जकड़ते हैं

शेर हम नहीं कहते तितलियाँ पकड़ते हैं

क्यूँ हमारे क़ब्ज़े में कोई जिन नहीं आता

इस चराग़-ए-हस्ती को हम भी तो रगड़ते हैं

बर-क़रारी-ए-ज़ाहिर कितना ख़ूँ रुलाती है

अपने जिस्म के अंदर हम किसी से लड़ते हैं

क़ाबिल-ए-उबूर इतनी है बदन की सफ़-बंदी

तीर जितने चलते हैं रूह ही में गाड़ते हैं

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In Hindi By Famous Poet Muslim Saleem. is written by Muslim Saleem. Complete Poem in Hindi by Muslim Saleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.