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गुलशन में फूल खिलते ही सद-चाक हो गए - मुस्लिम अंसारी कविता - Darsaal

गुलशन में फूल खिलते ही सद-चाक हो गए

गुलशन में फूल खिलते ही सद-चाक हो गए

रंगीन हादसे थे अलमनाक हो गए

दौर-ए-सुबू-ओ-जाम चला मय-कदे में जब

हम बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-अफ़्लाक हो गए

देखा जो मेरा हाल-ए-ज़बूँ शाम-ए-इंतिज़ार

अपने तो अपने ग़ैर भी नमनाक हो गए

साक़ी ये तेरा फ़ैज़-ए-करम है कि मय-गुसार

बेबाक थे ही और भी बेबाक हो गए

बाद-ए-सबा को ज़िद है कि क्यूँ ख़ाक भी रहे

मर कर जो कू-ए-यार में हम ख़ाक हो गए

ये इंक़िलाब-ए-वक़्त का ए'जाज़ देखिए

अहल-ए-जुनूँ भी साहब-ए-इदराक हो गए

अच्छा हुआ जो 'मुस्लिम'-ए-दीवाना चल बसा

क़िस्से तो दार-ओ-गीर के अब पाक हो गए

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In Hindi By Famous Poet Muslim Ansari. is written by Muslim Ansari. Complete Poem in Hindi by Muslim Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.