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क्या करूँ कुछ भी समझ आता नहीं - मुश्ताक़ सिंह कविता - Darsaal

क्या करूँ कुछ भी समझ आता नहीं

क्या करूँ कुछ भी समझ आता नहीं

वो ख़यालों से मिरे जाता नहीं

क्या ख़बर चेहरा कहाँ वो खो गया

ख़्वाब में भी जो नज़र आता नहीं

रात जुगनू चाँद-तारों का हुजूम

दिल परेशाँ चैन क्यूँ पाता नहीं

कोई सूरज अपने दामन में लिए

ख़्वाब-ए-फ़र्दा का निशाँ आता नहीं

बर्फ़ ज़ेहनों में जमी है इस क़दर

हादसों का डर भी गर्माता नहीं

इस क़दर धुँदला गया है आइना

कोई भी चेहरा नज़र आता नहीं

किस लिए उन के तसव्वुर का तिलिस्म

अब दिल-ए-'मुश्ताक़' बहलाता नहीं

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Singh. is written by Mushtaq Singh. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Singh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.