रफ़्ता रफ़्ता डर जाएँगे
क़िस्तों में हम मर जाएँगे
मैं ने चुग़ली खाई तो फिर
दुश्मन भूखों मर जाएँगे
हिकमत से आरी मंसूबे
कितनों के दर पर जाएँगे
अंदर ऐसी ख़ामोशी है
सन्नाटे भी डर जाएँगे
हैवानों से बच कर रहिए
सहरा को भी चर जाएँगे
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ये जो लम्बी रात है यारो
कभी अनजाने में जब भी किसी का दिल दुखाता हूँ
हम अपनी मोहब्बत का तमाशा नहीं करते
दर्द को दर्द कहो दर्द के क़ाबिल हो जाओ
जब अच्छे थे दिन रात कम याद आए
आइना ऐसा कभी देखा न था
हाथ जो खोला तो बच्चा रो पड़ा
जुनूँ में ध्यान से आख़िर फिसल गई कोई शय
महरूमियों का मुझ को जो आदी बना दिया