हम अपनी मोहब्बत का तमाशा नहीं करते
हम अपनी मोहब्बत का तमाशा नहीं करते
करते हैं अगर कुछ तो दिखावा नहीं करते
ये सच है कि दुनिया की रविश ठीक नहीं है
कुछ हम भी तो दुनिया को गवारा नहीं करते
इक बार तो मेहमान बनें घर पे हमारे
ये उन से गुज़ारिश है तक़ाज़ा नहीं करते
दुनिया के झमेले ही कुछ ऐसे हैं कि उन को
हम भूल तो जाते हैं भुलाया नहीं करते
फ़र्दा पे हैं नज़रें तो कभी हाल पे नज़रें
माज़ी को मगर मुड़ के भी देखा नहीं करते
जिन में कि बुज़ुर्गों की कोई क़द्र नहीं हो
हम ऐसे घरों में कभी रिश्ता नहीं करते
बारिश हो कि तूफ़ान हो या आग का जंगल
हम घर से निकल जाएँ तो सोचा नहीं करते
जो ख़्वाब नज़र आता है सरसब्ज़ ज़मीं का
उस ख़्वाब की ताबीर बताया नहीं करते
बाज़ार में बिकते नहीं वो लोग उमूमन
रिश्तों का जो अपने कभी सौदा नहीं करते
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