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जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे - मुश्ताक़ नक़वी कविता - Darsaal

जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे

जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे

फूलों में गुज़रती है जिन की काँटों की चुभन क्या समझेंगे

पत्थर के पुजारी आँखों की गहराई को पाना क्या जानें

क़िस्मत पे यक़ीं रखने वाले माथे की शिकन क्या समझेंगे

हम दीवाने हैं दीवाने बेकार सबक़ देते हो हमें

हम मौत के मअनी किया जानें हम दार-ओ-रसन क्या समझेंगे

क्या दुख है हमें क्या ग़म है हमें क्यूँ जाएँ किसी से कहने को

कलियों की जौ इज़्ज़त कर न सके वो दर्द-ए-चमन क्या समझेंगे

क्यूँ नाहक़ ले कर बैठ गए ग़म-हा-ए-मुसलसल का क़िस्सा

वो दर्द की क़ीमत क्या जानें वो दिल की जलन क्या समझेंगे

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Naqvi. is written by Mushtaq Naqvi. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Naqvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.