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बहुत पहुँचे तो उन के काकुल-ओ-रुख़्सार तक पहुँचे - मुश्ताक़ नक़वी कविता - Darsaal

बहुत पहुँचे तो उन के काकुल-ओ-रुख़्सार तक पहुँचे

बहुत पहुँचे तो उन के काकुल-ओ-रुख़्सार तक पहुँचे

मगर आशिक़ न अब तक इश्क़ के मेआ'र तक पहुँचे

दबाईं धड़कनें आँखों को झुठलाया गया बरसों

बड़ी मुश्किल से वो इंकार से इक़रार तक पहुँचे

अभी तो रौशनी उलझी है तारीकी के तूफ़ाँ से

न जाने कब तलक अपने दर-ओ-दीवार तक पहुँचे

छुड़ाओ गर छुड़ा सकते हो दामान-ए-वफ़ा हम से

मगर ऐसा न हो ये बात भी अग़्यार तक पहुँचे

ज़बाँ की आरज़ू में ठोकरें खाते हुए नग़्मे

रुबाब-ओ-चंग से तलवार की झंकार तक पहुँचे

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Naqvi. is written by Mushtaq Naqvi. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Naqvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.