Ghazals of Mushtaq Naqvi
नाम | मुश्ताक़ नक़वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushtaq Naqvi |
ज़िंदगी का निशान हैं हम लोग
ज़बाँ पे ख़ुद-बख़ुद अर्ज़-ए-मोहब्बत आई जाती है
ये उजाला हर इक शय को चमका गया
ये क्या वसवसे हम-सफ़र हो गए हैं
सिमटे तो ऐसे शम्स-ओ-क़मर में सिमट गए
सिलसिला जब तिरी बातों का जवाँ होता है
साज़ बने उन अश्कों से जो बहते हैं तन्हाई में
रहे है आज कल कुछ इस तरह चर्ख़-ए-कुहन बिगड़ा
मुद्दतों ये सोच कर तन्हाई में तड़पा किए
माइल जो आज-कल निगह-ए-नीम-बाज़ है
लम्बी थी उम्र मोहब्बत की बर्बाद हुए होते होते
किसे बताएँ मोहब्बत में क्या किया मैं ने
किस क़दर प्यास मिली आप के मयख़ाने से
करम में है न सितम में न इल्तिफ़ात में है
जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे
हम-सफ़र रातों के साए हो गए
गुलशन भी सजाए हैं इस ने ये झलका है शमशीर में भी
ग़मों ने इस तरह घेरा कभी नहीं होगा
दिलों का हाल वो बे-ए'तिबार क्या जाने
दिल सी वीरानी में साया कोई मेहमान तो है
बहुत पहुँचे तो उन के काकुल-ओ-रुख़्सार तक पहुँचे