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शाम-ए-ग़म से शब-ए-अंदोह से चश्म-ए-तर से - मुश्ताक़ अंजुम कविता - Darsaal

शाम-ए-ग़म से शब-ए-अंदोह से चश्म-ए-तर से

शाम-ए-ग़म से शब-ए-अंदोह से चश्म-ए-तर से

बाज़ आया मैं तिरी याद के उस लश्कर से

याँ शब-ओ-रोज़ है मतलब किसे ख़ैर-ओ-शर से

ज़िंदगी का है अजब सिलसिला सीम-ओ-ज़र से

जो तुझे चाहा बताना न बताया फिर भी

कब छुपा हाल-ए-दिल-ए-सोख़्ता नामा-बर से

बा'द-ए-तकमील हुई घर की हक़ीक़त मा'लूम

घर कहाँ बनता है दीवार से छत से दर से

मेहरबानों में तिरा नाम तो लिक्खा है मगर

ख़ूब वाक़िफ़ हूँ मिरी जान तिरे तेवर से

सर बचाता हूँ तो फिर पाँव निकल जाते हैं

ऐब इफ़्लास का छुपता ही नहीं चादर से

हिर्स की दौड़ से रहता हूँ अलग ऐ 'अंजुम'

फ़ैज़ पहुँचा है मुझे दर्स-ए-गह-ए-'क़ैसर' से

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Anjum. is written by Mushtaq Anjum. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Anjum. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.