Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_cfaf19a6403678c81dc8f4251233d31d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सभी तो हैं मगर अब मेहरबाँ कहाँ है कोई - मुश्ताक़ अंजुम कविता - Darsaal

सभी तो हैं मगर अब मेहरबाँ कहाँ है कोई

सभी तो हैं मगर अब मेहरबाँ कहाँ है कोई

नज़र में प्यार लिए दरमियाँ कहाँ है कोई

इक अपना सर ही नहीं दिल भी मैं झुका दूँगा

मगर बताओ ज़रा आस्ताँ कहाँ है कोई

सितमगरी की हदें उस ने तोड़ डाली हैं

हमारी तरह मगर बे-ज़बाँ कहाँ है कोई

कभी तो पूरे शजर पर था अपना काशाना

हमारे नाम का अब आशियाँ कहाँ है कोई

तुम्हारी अपनी ही कश्ती डुबो न दे तुम को

हवा है तेज़ मगर बादबाँ कहाँ है कोई

हमारे पाँव तले की ज़मीन खींचते हो

हमारे बा'द तुम्हारा जहाँ कहाँ है कोई

करोगे ग़ौर तो 'अंजुम' समझ में आएगा

ज़मीं है चारों तरफ़ आसमाँ कहाँ है कोई

(448) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Mushtaq Anjum. is written by Mushtaq Anjum. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Anjum. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.