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बाल-ओ-पर रखते नहीं अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं - मुश्ताक़ अंजुम कविता - Darsaal

बाल-ओ-पर रखते नहीं अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं

बाल-ओ-पर रखते नहीं अज़्म-ए-सफ़र रखते हैं

शौक़-ए-परवाज़ ब-अंदाज़-ए-दिगर रखते हैं

हाथ उठाने की कोई शर्त दुआ में कब है

तेरे उश्शाक़ निगाहों में असर रखते हैं

बिल-इरादा न सही यूँ ही कभी आ जाओ

प्यार के रस्ते में हम छोटा सा घर रखते हैं

ये अलग बात कि आते हैं नज़र ज़र्रा-सिफ़त

वर्ना क़दमों में तो हम शम्स-ओ-क़मर रखते हैं

धूप है रेत है और अपना सफ़र है जारी

साया रखते हैं न हम लोग शजर रखते हैं

उस तरफ़ वाले नज़र आते हैं लर्ज़ीदा मगर

इस तरफ़ वाले कफ़-ए-दस्त पे सर रखते हैं

पुर-सुकूँ है जो फ़ज़ा उस पे न जाना 'अंजुम'

आशियाँ कितने अभी बर्क़-ओ-शरर रखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Anjum. is written by Mushtaq Anjum. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Anjum. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.