अश्क पलकों पे जो आएँ तो छुपाए न बने
अश्क पलकों पे जो आएँ तो छुपाए न बने
टूट कर बिखरें ये मोती तो उठाए न बने
क़हर है अपने लिए सोज़-ए-दरूँ का आलम
देखना गर कोई चाहे तो दिखाए न बने
किस तरह हाथ उठाऊँ मैं दुआ की ख़ातिर
हाथ इक पल भी तो सीने से हटाए न बने
क़िस्सा-ए-हसरत-ए-दिल हम से बयाँ क्या होगा
बे-रुख़ी उन की है ऐसी कि बताए न बने
ज़ुल्म को ज़ुल्म समझता है कहाँ वो ज़ालिम
हाल-ए-दिल अपना सितमगर को सुनाए न बने
कौन सी बात थी क्या तर्ज़-ए-अदा थी 'अंजुम'
नक़्श ऐसा हुआ दिल पर कि मिटाए न बने
(491) Peoples Rate This