तरदीद
लफ़्ज़-ओ-मा'नी
हमेशा से मेरे लिए
अजनबी ही रहे
गुफ़्तुगू
मेरे सर एक इल्ज़ाम है
मैं चीख़ा हूँ
रोया हूँ
सरगोशियाँ की हैं
लेकिन
किसी से
कोई गुफ़्तुगू आज तक
मैं ने की ही नहीं
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लफ़्ज़-ओ-मा'नी
हमेशा से मेरे लिए
अजनबी ही रहे
गुफ़्तुगू
मेरे सर एक इल्ज़ाम है
मैं चीख़ा हूँ
रोया हूँ
सरगोशियाँ की हैं
लेकिन
किसी से
कोई गुफ़्तुगू आज तक
मैं ने की ही नहीं
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