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लहू जला के उजाले लुटा रहा है चराग़ - मुश्ताक़ आजिज़ कविता - Darsaal

लहू जला के उजाले लुटा रहा है चराग़

लहू जला के उजाले लुटा रहा है चराग़

कि ज़िंदगी का सलीक़ा सिखा रहा है चराग़

वुफ़ूर-ए-शौक़ में लैला-ए-शब के चेहरे से

नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ उठा रहा है चराग़

हमारे साथ पुराने शरीक-ए-ग़म की तरह

अज़ाब-ए-हिज्र के सदमे उठा रहा है चराग़

ये रौशनी का पयम्बर है इस की बात सुनो

सदाक़तों के सहीफ़े सुना रहा है चराग़

शब-ए-सियाह का आसेब टालने के लिए

तमाम उम्र शरीक-ए-दुआ रहा है चराग़

हवा-ए-दहर चली है बड़ी रऊनत से

दयार इश्क़ में कोई जला रहा है चराग़

वो हाथ भी यद-ए-बैज़ा से कम नहीं 'आजिज़'

जो ख़ाक-ए-अर्ज़-ए-वतन से बना रहा है चराग़

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Ajiz. is written by Mushtaq Ajiz. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Ajiz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.