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तिरे जहाँ से अलग इक जहान चाहता हूँ - मुश्ताक़ आज़र फ़रीदी कविता - Darsaal

तिरे जहाँ से अलग इक जहान चाहता हूँ

तिरे जहाँ से अलग इक जहान चाहता हूँ

नई ज़मीन नया आसमान चाहता हूँ

बदन की क़ैद से बाहर तो जा नहीं सकता

इसी हिसार में रह कर उड़ान चाहता हूँ

ख़मोश रहने पे अब दम सा घुटने लगता है

मिरे ख़ुदा मैं दहन में ज़बान चाहता हूँ

कोई शजर ही सही धूप से नजात तो हो

ये तुम से किस ने कहा साएबान चाहता हूँ

ये टुकड़ा टुकड़ा ज़मीनें न कर अता मुझ को

मैं पूरे सहन का पूरा मकान चाहता हूँ

फिर एक बार मिरी अहमियत को लौटा दे

तिरी निगाह को फिर मेहरबान चाहता हूँ

मिरी तलब कोई दुश्वार-कुन नहीं 'आज़र'

इसी ज़मीन पे हिफ़्ज़-ओ-अमान चाहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Mushtaq Aazar Fareedi. is written by Mushtaq Aazar Fareedi. Complete Poem in Hindi by Mushtaq Aazar Fareedi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.