सितम में भी शान-ए-करम देखते हैं
सितम में भी शान-ए-करम देखते हैं
हमें जानते हैं जो हम देखते हैं
जहाँ तक तअल्लुक़ है ऐब ओ ख़ता का
जो अहल-ए-नज़र हैं वो कम देखते हैं
तिरा इंतिज़ार इस क़दर बढ़ गया है
कि हर आने वाले को हम देखते हैं
नज़र सू-ए-काबा है दिल बुत-कदे में
हम अंदाज़-ए-अहल-ए-हरम देखते हैं
निगाहें यूँही मिल गईं बे-इरादा
न वो देखते हैं न हम देखते हैं
ये दुनिया तो क्या है सर-ए-अर्श-ए-आज़म
हम अपना ही नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
किसे अपना हाल-ए-परेशाँ सुनाएँ
परेशाँ ज़माने को हम देखते हैं
मिरी मंज़िलत कुछ इसी से समझिए
मिरी राह दैर ओ हरम देखते हैं
तिरी जुस्तुजू में हम अहल-ए-तमन्ना
ख़ुशी देखते हैं न ग़म देखते हैं
'मुशीर' अहल-ए-बीनश मिरी हर ग़ज़ल में
दिमाग़ और दिल को बहम देखते हैं
(624) Peoples Rate This