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दिल बेताब-ए-मर्ग-ए-ना-गहाँ बाक़ी न रह जाए - मुशीर झंझान्वी कविता - Darsaal

दिल बेताब-ए-मर्ग-ए-ना-गहाँ बाक़ी न रह जाए

दिल बेताब-ए-मर्ग-ए-ना-गहाँ बाक़ी न रह जाए

मोहब्बत का ये नाज़ुक इम्तिहाँ बाक़ी न रह जाए

सँभल कर फूँक ऐ बर्क़-ए-तपाँ मेरे नशेमन को

कहीं उजलत में शाख़-ए-आशियाँ बाक़ी न रह जाए

मदद ऐ जोश-ए-गिर्या ख़ून-ए-दिल शामिल है अश्कों में

कोई इस सिलसिला की दास्ताँ बाक़ी न रह जाए

मोहब्बत की हदें इस आलम-ए-इम्काँ से बाला हैं

किसी की जुस्तुजू में ला-मकाँ बाक़ी न रह जाए

तिरी शान-ए-करम पर कोई हर्फ़ आए मआज़-अल्लाह

कोई मय-ख़्वार ऐ पीर-ए-मुग़ाँ बाक़ी न रह जाए

मुसाफ़िर इश्क़ की मंज़िल सरापा राज़ होती है

कहीं चेहरे पे गर्द-ए-कारवाँ बाक़ी न रह जाए

नशेमन से क़फ़स तक सिलसिला हो बर्क़-ए-लर्ज़ां का

ये तर्ज़-ए-जौर भी ऐ आसमाँ बाक़ी न रह जाए

तुम्हारे सामने आँसू भी थम थम कर निकलते हैं

मैं डरता हूँ कहीं ये दास्ताँ बाक़ी न रह जाए

'मुशीर' अब हर नज़र में एक लुत्फ़-ए-ख़ास पाता हूँ

कोई इश्वा नसीब-ए-दुश्मनाँ बाक़ी न रह जाए

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In Hindi By Famous Poet Mushir Jhanjhanvi. is written by Mushir Jhanjhanvi. Complete Poem in Hindi by Mushir Jhanjhanvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.