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ये क्या ज़रूर हमीं को वो आज़माएगा - मुशफ़िक़ ख़्वाजा कविता - Darsaal

ये क्या ज़रूर हमीं को वो आज़माएगा

ये क्या ज़रूर हमीं को वो आज़माएगा

हर आने वाला मुक़द्दर भी साथ लाएगा

किसे ख़बर है कि इस तीरा-ख़ाक-दाँ के लिए

है एक दिल ही तो रौशन सो डूब जाएगा

खुले दरीचों से यूँ झाँकती है मायूसी

कि जैसे अब कोई झोंका इधर न आएगा

उदास रात की सरगोशियों के बा'द अगर

सहर जो आई तो किस को यक़ीन आएगा

मैं जिस के माज़ी का इक लम्हा-ए-गुरेज़ाँ हूँ

ये देखना है वो कैसे मुझे भुलाएगा

हज़ार ख़्वाब हैं इन ख़ुद-फ़रेब आँखों में

बिछड़ के भी वो यहाँ से कहीं न जाएगा

ये दिन भी आ गए अब अपने दिल पे बीती हुई

मैं ख़ुद कहूँगा मुझी को यक़ीं न आएगा

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In Hindi By Famous Poet Mushfiq Khwaja. is written by Mushfiq Khwaja. Complete Poem in Hindi by Mushfiq Khwaja. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.