जाने वाला जो कभी लौट के आया होगा
हम ने इक उम्र का ग़म कैसे छुपाया होगा
किस तवक़्क़ो पे कोई चाहे वफ़ाओं का सिला
उस ने कुछ सोच समझ कर ही भुलाया होगा
जिस से वाबस्ता रहा हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल तेरा
तुझ को वो शख़्स कभी याद तो आया होगा
ज़िंदगी अपनी बहर-हाल गुज़र जाएगी
तू न होगा तिरी दीवार का साया होगा