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हुजूम-ए-हम-नफसाँ चारा-ए-अलम न हुआ - मुशफ़िक़ ख़्वाजा कविता - Darsaal

हुजूम-ए-हम-नफसाँ चारा-ए-अलम न हुआ

हुजूम-ए-हम-नफसाँ चारा-ए-अलम न हुआ

कि इस तरह ग़म-ए-तन्हा-रवी तो कम न हुआ

न पूछ दश्त-ए-तलब में मता-ए-दामन-ए-ज़ीस्त

ये तार तार तो होता रहा प नम न हुआ

लिखी गई हैं जुनूँ की हिकायतें क्या क्या

मगर वो क़िस्सा-ए-ग़म जो कभी रक़म न हुआ

मिली न आबला-पायान-ए-शौक़ को मंज़िल

कि फ़ासलों की तरह हौसला भी कम न हुआ

रह-ए-तलब में है आसूदा-हाल मौज-ब-जिस्म

ख़ुदा ख़ुदा ही रहा और सनम सनम न हुआ

वो कौन हैं कि हवस रास आ गई है जिन्हें

यहाँ तो इश्क़ भी चारा-गर-ए-अलम न हुआ

गुमाँ हुआ मुझे एहसान-ए-ना-शनासी का

जो ख़ुद-बख़ुद कोई आमादा-ए-सितम न हुआ

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In Hindi By Famous Poet Mushfiq Khwaja. is written by Mushfiq Khwaja. Complete Poem in Hindi by Mushfiq Khwaja. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.