ज़ीं-साज़ी अगर आती मुझे मैं तो मिरी जाँ
पलकों से बनाता तिरे फ़ितराक के डोरे
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(410) Peoples Rate This
इस गोशा-ए-उज़्लत में तन्हाई है और मैं हूँ
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
मैं पहरों घर में पड़ा दिल से बात करता हूँ
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
जो तू ऐ 'मुसहफ़ी' रातों को इस शिद्दत से रोवेगा
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
तू ने मुँह फेरा और उस का नूर सा जाता रहा
काबा ओ दैर में ढूँडे जो कहीं ले के चराग़
जूँ ही ज़ंजीर के पास आए पाँव
क्यूँकर न तुझे दौड़ के छाती से लगा लूँ
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार